धान को लेकर केंद्र और राज्य की लड़ाई का खामियाज़ा भुगतने वाले प्रदेश के अन्नदाता को गेहूं बोनस मिलने की उम्मीद कम ही रखनी चाहिए. दरअसल, केंद्र सरकार राज्य से कई लाख मिट्रिक टन गेहूं नहीं खरीद रही है. बोनस को लेकर केंद्र और राज्य की लड़ाई भले ही ठनी हो लेकिन अन्नदाता के पास अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. रबी फसल खेतों मे लहलहा रही है और जल्द ही सरकारी खरीदी के लिए खरीदी केन्द्र में लाई जाने वाली है. पिछले साल 2019 का सेंट्रल पूल का करीब 7 लाख मिट्रिक टन से ज्यादा गेंहूं केन्द्र सरकार ने नहीं खरीदा था. इस वजह से किसानों को पिछले साल का बोनस भी नही मिल सका है. वहीं इस साल खरीदी से पहले किसान चिंता में हैं.
2019 मे 7 लाख मिट्रिक टन गेंहूं केन्द्र ने नही लिया
कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद 5 मार्च 2019 को गेहूं उत्पादक किसानों को 160 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से प्रोत्साहन राशि देने की योजना लागू की थी. इसमें उपार्जन केंद्रों पर गेहूं बेचने वालों के साथ मंडी में उपज बेचने वाले किसान भी शामिल किए गए हैं. बजट में सरकार ने 1,462 करोड़ रुपए का प्रावधान भी कर दिया. खरीदी का काम जब खत्म हो गया तब केंद्र सरकार ने सेंट्रल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जरूरत से ज्यादा गेहूं लेने से इंकार कर दिया. जबकि, केंद्र सरकार के साथ खरीदी के पहले 75 लाख मीट्रिक टन गेहूं सेंट्रल पूल में लेने पर सहमति बनी थी.
इस बारे में केंद्र सरकार ने यह तर्क दिया गया कि केंद्र और राज्य के बीच 2016 में अनुबंध हुआ था कि विकेंद्रीकृत उपार्जन व्यवस्था में बोनस नहीं दिया जाएगा. केन्द्र ने माना कि प्रदेश सरकार ने जय किसान समृद्धि योजना में जो प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान रखा है, वो बोनस ही है और इस तरह के कदम से बाजार प्रभावित होता है